Friday, October 26, 2012
मेरी भावना
जिसने राग द्वेष कामादिक जीते सब जग जान लिया
विषयो की आशा नहि जिनके साम्य भाव धन रखते हैं
रहे सदा सत्संग उन्ही का ध्यान उन्ही का नित्य रहे हैं
अहंकार का भाव न रखु नहीं किसी पर क्रोध करू
मंत्री भाव जगत में मेरा सब जीवो से नित्य रहे
गुनी जनों को देख ह्रदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे
कोई बुरा कहो या अच्छा लक्ष्मी आवे या जावे
होकर सुख में मग्न न दुले दुःख में कभी न घबरावे
सुखी रहे सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे
इति भीती व्यापे नहीं जग में वृस्ती समय पर हुआ करे
फैले प्रेम परस्पर जगत में मोह दूर हो राह करे
मंगलाचरण
चत्तारी मंगलं-अर्हंत मंगलं ,
सिद्ध मंगलं, साहू मंगलं,
केवली पण्णत्तो धम्मो मंगलं
चत्तारी लोगुत्तमा-अर्हंता लोगुत्तमा.
सिद्ध लोगुत्तमा ,
साहू लोगुत्तमा ,
केवली पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा
चत्तारी सरणं पवज्जामि – अर्हंत सरणं पवज्जामि ,
सिद्ध सरणं पवज्जामि ,
साहू सरणं पवज्जामि
केवली पण्णत्तो धम्मो सरणं पवज्जामि
सिद्ध मंगलं, साहू मंगलं,
केवली पण्णत्तो धम्मो मंगलं
चत्तारी लोगुत्तमा-अर्हंता लोगुत्तमा.
सिद्ध लोगुत्तमा ,
साहू लोगुत्तमा ,
केवली पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा
चत्तारी सरणं पवज्जामि – अर्हंत सरणं पवज्जामि ,
सिद्ध सरणं पवज्जामि ,
साहू सरणं पवज्जामि
केवली पण्णत्तो धम्मो सरणं पवज्जामि
Subscribe to:
Posts (Atom)