Wednesday, April 20, 2011

समाधि भावना


दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ,
देहांत के समय में, तुमको न भूल जाऊँ । टेक।
शत्रु अगर कोई हो, संतुष्ट उनको कर दूँ,
समता का भाव धर कर, सबसे क्षमा कराऊँ ।१।
त्यागूँ आहार पानी, औषध विचार अवसर,
टूटे नियम न कोई, दृढ़ता हृदय में लाऊँ ।२।
जागें नहीं कषाएँ, नहीं वेदना सतावे,
तुमसे ही लौ लगी हो,दुर्ध्यान को भगाऊँ ।३।
आत्म स्वरूप अथवा, आराधना विचारूँ,
अरहंत सिद्ध साधूँ, रटना यही लगाऊँ ।४।
धरमात्मा निकट हों, चर्चा धरम सुनावें,
वे सावधान रक्खें, गाफिल न होने पाऊँ ।५।
जीने की हो न वाँछा, मरने की हो न ख्वाहिश,
परिवार मित्र जन से, मैं मोह को हटाऊँ ।६।
भोगे जो भोग पहिले, उनका न होवे सुमिरन,
मैं राज्य संपदा या, पद इंद्र का न चाहूँ ।७।
रत्नत्रय का पालन, हो अंत में समाधि,
‘शिवराम’ प्रार्थना यह, जीवन सफल बनाऊँ ।८।

पार्श्वनाथ स्तवन


तुम से लागी लगन, ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा,
मेटो मेटो जी संकट हमारा।
निशदिन तुमको जपूँ, पर से नेह तजूँ, जीवन सारा,
तेरे चाणों में बीत हमारा ॥टेक॥
अश्वसेन के राजदुलारे, वामा देवी के सुत प्राण प्यारे।
सबसे नेह तोड़ा, जग से मुँह को मोड़ा, संयम धारा ॥मेटो॥
इंद्र और धरणेन्द्र भी आए, देवी पद्मावती मंगल गाए।
आशा पूरो सदा, दुःख नहीं पावे कदा, सेवक थारा ॥मेटो॥
जग के दुःख की तो परवाह नहीं है, स्वर्ग सुख की भी चाह नहीं है।
मेटो जामन मरण, होवे ऐसा यतन, पारस प्यारा ॥मेटो॥
लाखों बार तुम्हें शीश नवाऊँ, जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊँ ।
पंकज व्याकुल भया दर्शन बिन ये जिया लागे खारा ॥मेटो॥

नवकार मंत्र ही महामंत्र


नवकार मंत्र ही महामंत्र, निज पद का ज्ञान कराता है।
निज जपो शुद्ध मन बच तन से, मनवांछित फल का दाता है॥1॥ नवकार…
पहला पद श्री अरिहंताणां, यह आतम ज्योति जगाता है।
यह समोसरण की रचना की भव्यों को याद दिलाता है॥2॥ नवकार…
दूजा पद श्री सिद्धाणं है, यह आतम शक्ति बढ़ाता है।
इससे मन होता है निर्मल, अनुभव का ज्ञान कराता है॥3॥ नवकार…
तीजा पद श्री आयरियाणां, दीक्षा में भाव जगाता है।
दुःख से छुटकारा शीघ्र मिले, जिनमत का ज्ञान बढ़ाता है॥4॥ नवकार…
चौथा पद श्री उवज्ज्ञायणं, यह जैन धर्म चमकता है।
कर्मास्त्रव को ढीला करता, यह सम्यक्‌ ज्ञान कराता है॥5॥ नवकार…
पंचमपद श्री सव्वसाहूणं, यह जैन तत्व सिखलाता है।
दिलवाता है ऊँचा पद, संकट से शीघ्र बचाता है॥6॥ नवकार…
तुम जपो भविक जन महामंत्र, अनुपम वैराग्य बढ़ाता है।
नित श्रद्धामन से जपने से, मन को अतिशांत बनाता है॥7॥ नवकार…
संपूर्ण रोग को शीघ्र हरे, जो मंत्र रुचि से ध्याता है।
जो भव्य सीख नित ग्रहण करे, वो जामन मरण मिटाता है॥8॥ नवकार…

जिनेन्द्र प्रार्थना


जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र बोलिए।
जय जिनेन्द्र की ध्वनि से, अपना मौन खोलिए॥
सुर असुर जिनेन्द्र की महिमा को नहीं गा सके।
और गौतम स्वामी न महिमा को पार पा सके॥
जय जिनेन्द्र बोलकर जिनेन्द्र शक्ति तौलिए।
जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, बोलिए॥
जय जिनेन्द्र ही हमारा एक मात्र मंत्र हो
जय जिनेन्द्र बोलने को हर मनुष्य स्वतंत्र हो॥
जय जिनेन्द्र बोल-बोल खुद जिनेन्द्र हो लिए।
जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र बोलिए॥
पाप छोड़ धर्म छोड़ ये जिनेन्द्र देशना।
अष्ट कर्म को मरोड़ ये जिनेन्द्र देशना॥
जाग, जाग, जग चेतन बहुकाल सो लिए।
जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र बोलिए॥
है जिनेन्द्र ज्ञान दो, मोक्ष का वरदान दो।
कर रहे प्रार्थना, प्रार्थना पर ध्यान दो॥
जय जिनेन्द्र बोलकर हृदय के द्वार खोलिए।
जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र बोलिए॥
जय जिनेन्द्र की ध्वनि से अपना मौन खोलिए॥
मुक्तक
द्वार है सब एक दस्तक भिन्न है।
भाव है सब एक मस्तक भिन्न है।
जिंदगी स्कूल है ऐसी जहाँ-
पाठ है सब एक पुस्तक भिन्न है।

बाजे छम-छम-छम

बाजे छम-छम-छम छम बाजे घुँघरू
बाजे घुँघरू…
हाथों में दीपक लेकर आरती करूँ
बाजे छम-छम…
प्रभु को उठाया हाथी पे बैठाया …(२)
पांडुक बन अभिषेक कराया…इसलिए प्रभु तेरी आरती करूँ
दीपक ज्योति से आरती करूँ …(२)
वीर प्रभुजी की मूरत निहारूँ …(२)
ध्यान लगन चरणों में धरूँ
चरणों में धरूँ… हाथों में दीपक लेकर
हम सब प्रभु के गुण को गाएँ
प्रभुजी के चरणों में शीश झुकाएँ… इसलिए प्रभु तेरी आरती करूँ
प्रभु तुम बिन मोहे कोई ना संभाले
प्रभु तुम बिन कोई ना पारे लगावे
मेरी यही चाह और कुछ ना कहूँ… हाथों में दीपक लेकर आरती करूँ

भगवान महावीर आरती


ॐ जय महावीर प्रभु, स्वामी जय महावीर प्रभु
कुंडलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो ….ॐ जय महा….॥
सिद्धारथ घर जन्में, वैभव था भारी, स्वामी वैभव था भारी।
बाल ब्रह्मचारी व्रत, पाल्यो तपधारी॥ ….ॐ जय महा….॥
आतम ज्ञान विरागी, समदृष्टि धारी।
माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति धारी॥ ….ॐ जय महा….॥
जग में पाठ अहिंसा, आप ही विस्तारयो।
हिंसा पाप मिटा कार, सुधर्म परिचारयो॥ ….ॐ जय महा….॥
यही विधि चाँदनपुर में, अतिशय दर्शायो।
ग्वाल मनोरथ पूरयो, दूध गाय पायो॥ ….ॐ जय महा….॥
प्राणदान मंत्री को, तुमने प्रभु दीना।
मंदिर तीन शिखर का, निर्मित है कीना॥ ….ॐ जय महा….॥
जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी।
एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी॥ ….ॐ जय महा….॥
जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर जावे।
धन, सुत सब कुछ पावै, संकट मिट जावै॥ ….ॐ जय महा….॥
निश दिन प्रभु मंदिर में, जगमग ज्योति जरै।
हरि प्रसाद चरणों में, आनंद मोद भरै॥ ….ॐ जय महा….॥


महावीर वंदना


जो मोह माया मान मत्सर, मदन मर्दन वीर हैं।
जो विपुल विघ्नों बीच में भी, ध्यान धारणा धीर हैं॥
जो तरण-तारण, भव-निवारण, भव-जलधि के तीर हैं।
वे वंदनीय जिनेश, तीर्थंकर स्वयं महावीर हैं॥
जो राग-द्वेष विकार वर्जित, लीन आतम ध्यान में।
जिनके विराट विशाल निर्मल, अचल केवल ज्ञान में॥
युगपद विशद सकलार्थ झलकें, ध्वनित हों व्याख्यान में।
वे वर्द्धमान महान जिन, विचरें हमारे ध्यान में॥
जिनका परम पावन चरित, जलनिधि समान अपार है।
जिनके गुणों के कथन में, गणधर न पावैं पार है॥
बस वीतरागी-विज्ञान ही, जिनके कथन का सार है।
उन सर्वदर्शी सन्मति को, वंदना शत बार है॥
जिनके विमल उपदेश में, सबके उदय की बात है।
समभाव समताभाव जिनका, जगत में विख्यात है॥
जिसने बताया जगत को, प्रत्येक कण स्वाधीन है।
कर्ता न धर्ता कोई है, अणु-अणु स्वयं में लीन है॥
आतम बने परमात्मा, हो शांति सारे देश में।
है देशना-सर्वोदयी, महावीर के संदेश में॥