मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूँ
मैं हूँ अपने में स्वयं पूर्ण,
पर की मुझ में कुछ गंध नहीं ।
मैं अरस अरूपी अस्पर्शी,
पर से कुछ भी संबंध नहीं ॥
मैं रंग-राग से भिन्न भेद से,
भी मैं भिन्न निराला हूँ ।
मैं हूँ अखंड चैतन्यपिण्ड,
निज रस में रमनेवाला हूँ ॥
मैं ही मेरा कर्ता-धर्ता,
मुझ में पर का कुछ काम नहीं ।
मैं मुझ में रहनेवाला हूँ,
पर में मेरा विश्राम नहीं ॥
मैं शुद्ध बुद्ध अविरूद्ध एक,
पर-परिणती से अप्रभावी हूँ ॥
आत्मानुभूती से प्राप्त तत्व,
मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूँ ॥
मैं हूँ अपने में स्वयं पूर्ण,
पर की मुझ में कुछ गंध नहीं ।
मैं अरस अरूपी अस्पर्शी,
पर से कुछ भी संबंध नहीं ॥
मैं रंग-राग से भिन्न भेद से,
भी मैं भिन्न निराला हूँ ।
मैं हूँ अखंड चैतन्यपिण्ड,
निज रस में रमनेवाला हूँ ॥
मैं ही मेरा कर्ता-धर्ता,
मुझ में पर का कुछ काम नहीं ।
मैं मुझ में रहनेवाला हूँ,
पर में मेरा विश्राम नहीं ॥
मैं शुद्ध बुद्ध अविरूद्ध एक,
पर-परिणती से अप्रभावी हूँ ॥
आत्मानुभूती से प्राप्त तत्व,
मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूँ ॥
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